अरविंद कुजूर: छतरपुर की हांडी का एक चावल
धर्मेंद्र पैगवार
भोपाल। छतरपुर में एक युवा थाना प्रभारी अरविंद कुजूर ने सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। आमतौर पर पुलिसकर्मी काम के दबाव के कारण आत्महत्या जैसा गलत कदम उठाते हैं। कुजूर पर दबाव तो था लेकिन वह दूसरे प्रकार के “काम” का। उनकी आत्महत्या छतरपुर में पिछले दो सालों से चल रहे राजनीतिक दबाव और बड़े अफसरों द्वारा भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने के बजाय उसके संरक्षण के लिए किए जाने वाली कोशिशों का परिणाम है।
कुजूर की पूरी नौकरी पन्ना और छतरपुर में ही बीती है। छतरपुर में उनकी लगातार दूसरी पोस्टिंग थी। पिछली होली पर हरिओम शुक्ला नामक एक युवक की हत्या हुई। आरोपी अभिषेक परिहार था। जब थाना पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया तो एसपी अगम जैन ने अपनी एक टीम बनाकर काठमांडू भेजी ओर आरोपी को गिरफ्तार कराया। काठमांडू से पकड़ा गया आरोपी जब छतरपुर कोतवाली में लाया गया तो वह टीआई के कमरे में बैठकर खीर पी रहा था। इस सूचना पर जब एसपी जैन थाने पहुंचे तो उन्होंने सब कुछ अपनी आंखो से देखा। उन्होंने चार सिपाही को लाइन हाजिर किया। लेकिन कुजूर एंड कपनी का रसूख इतना जबरदस्त था कि इस युवा आईपीएस की कार्रवाई पर भी 15 दिन तक सिपाहियों को रिलीव नहीं किया गया। इस मामले में उन्होंने पुलिस मुख्यालय तक पत्राचार किया। बाद में सभी पुलिस आरक्षकों की अलग अलग थानों में पोस्टिंग हो गई।
डायरी इतनी कमजोर बनी की 3 महीने में ही आरोपी अभिषेक परिहार जमानत पर बाहर आ गया।
दूसरी कहानी सटोरिया राहुल शुक्ला की है। उसने जेसीबी से एक व्यक्ति का मकान गिरा दिया। एसपी ने राहुल शुक्ला पर 20000 का इनाम घोषत किया। हाईकोर्ट ने उसका अग्रिम जमानत आवेदन निरस्त कर दिया। बाद में कोतवाली थाने से धाराएं कमजोरी की गई और थाने से ही जमानत दे दी गई। राहुल पर न केवल छतरपुर बल्कि सतना में भी जुए सट्टे के केस दर्ज है। उसे पर इस कदर पुलिस का संरक्षण है कि वह छतरपुर में बैठकर पूरे मध्य प्रदेश में क्रिकेट के सट्टे की चेन चला रहा है। अरविंद कुजूर कुछ अस्पताल ले जाया गया तो राहुल शुक्ला सबसे आगे था।
छतरपुर कोतवाली में हुए हमले में 15 दिन से चल रही पर्चे बाजी को भी थाना पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया था और यह सब तब होता है जब थाना पुलिस को बड़े लोगों का संरक्षण मिले।
सूत्र बताते हैं कि गलत तरीके से आ रहे पैसे ने कुजूर का रास्ता भटका दिया था। उनके छतरपुर घर पर महिला मित्रों की आवाजाही बढ़ गई थी।
सूत्र बताते हैं कि आशी राजा नामक युवती ने उनके करीबी का फायदा उठा कर कोई वीडियो बना लिया था। इसकी एवज में कुछ दिन पहले उसे एक बड़ी एसयूवी गिफ्ट की गई। डिमांड के साथ दबाव बड़ा तो कुजूर को आत्महत्या का कदम उठाना पड़ा। सवाल यह है कि कुजूर छतरपुर जैसे बड़े शहर के कोतवाल थे। उनकी गतिविधियां किसको नजर नहीं आ रही थी। य कोई जनबूझकर उन्हें नजर अंदाज कर रहा था। क्या अनुशासित माने जाने वाले पुलिस बल में छतरपुर से लेकर सागर तक सभी की आंखें बंद थी? इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो वहां कुएं में भांग घुली थी य बंदरबांट में सब शामिल थे। यदि समय रहते स्थितियों को संभाला जाता तो कुजूर को इस कदम उठाने से रोका जा सकता था।
