पूना। धार्मिक कथाओं और किंवदंतियों में कहा जाता है कि भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति पर झूठे आरोप लगते हैं। देश के जाने वाले आध्यात्मिक और योग गुरु रघुनाथ येमूल गुरुजी अध्यात्म में विज्ञान की खोज के तहत इन गंभीर विषयों पर लगातार रिसर्च कर रहे हैं। उनका कहना है कि पुराणों के अनुसार, एक बार श्री गणेश भगवान ने अधिक मोदक का सेवन किया और उस समय श्री चन्द्र भगवान ने उनका उपहास किया। तब श्री गणेश भगवान ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी श्री चन्द्र भगवान के दर्शन करेगा, उस पर मिथ्या दोष (झूठा कलंक) लगेगा। तभी से इस दिन श्री चन्द्र भगवान के दर्शन न करने की परंपरा बनी। यदि भूलवश दर्शन हो जाएँ तो “सिंहः प्रसेनमवधीत्…” श्लोक का पाठ करने से दोष निवारण माना गया है। रघुनाथ गुरुजी बताते हैं कि ज्योतिष और वेदों में श्री चन्द्र भगवान को मन और भावनाओं का कारक माना गया है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उनकी स्थिति ऐसी होती है कि मन में चंचलता और भ्रांति उत्पन्न हो सकती है। इसीलिए इस दिन श्री चन्द्र भगवान के दर्शन से बचना, मन की शांति और एकाग्रता बनाए रखने का उपाय माना गया। रघुनाथ गुरुजी बताते हैं कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। भाद्रपद मास वर्षा ऋतु का समय है। इस समय आकाश में नमी और बादलों से प्रकाश का विचलन (optical illusion) अधिक होता है।ऐसी स्थिति में श्री चन्द्र भगवान के दर्शन करने पर दृष्टिभ्रम या मिथ्या अनुभूति हो सकती है।वर्षा ऋतु में बाहर निकलना, भीगना और मच्छरों के संपर्क में आना रोगों (डेंगू, मलेरिया आदि) का खतरा बढ़ाता है। इस प्रकार चन्द्र दर्शन-वर्जन अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य-सुरक्षा का उपाय भी रहा। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि श्री चन्द्र भगवान की रोशनी circadian rhythm और melatonin hormone पर प्रभाव डालती है, जिससे नींद और मानसिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
ये हैं कारण
धार्मिक: श्री गणेश भगवान का आशीर्वाद और मिथ्या दोष से बचाव।
•आध्यात्मिक: श्री चन्द्र भगवान की चंचल ऊर्जा से मन को स्थिर रखना।
•वैज्ञानिक: वर्षा ऋतु की परिस्थितियों से स्वास्थ्य की रक्षा और प्रकाश के भ्रम से बचना।