धर्मेंद्र पैगवार
भोपाल। क्या मौजूदा दौर में यह कल्पना की जा सकती है कि पुलिस हड़ताल करेंगी ? लेकिन मध्य प्रदेश में वर्ष 2001 – 2002 में ऐसा भी हुआ है। स्पेशल डीजी मनीष शंकर शर्मा का बीती रात दिल्ली में निधन हो गया। सोमवार को भोपाल के विश्राम घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

यह मनीष शंकर शर्मा के बिंदास पुलिस अफसर होने की एक कहानी है। दूसरी कहानी उनके संवेदनशील सामाजिक कार्यकर्ता होने की है। वह सामाजिक विषयों पर ज्यादा काम करते थे। वह ऑफिशियल प्रोग्राम के तहत अमेरिका के कैलिफोर्निया गए। वहां लंबे समय तक रहे। सेन डियागो रिटायर्ड अफसरों का शहर था। यहां उनकी सुरक्षा से लेकर स्वास्थ्य पर उन्होंने बहुत काम किया।
मनीष शंकर शर्मा बताते थे कि “एक समय था जब लोग भारत को सपेरों का देश मानते थे। लोगों की धारणा थी कि हम अपनी महिलाओं पर प्रतिबंध लगाते हैं और उन्हें बाहर निकलने की अनुमति नहीं देते हैं। जब भी उन्होंने चर्चाओं में भाग लिया, इस तरह की गलत धारणाओं को नकारने की कोशिश की कि कैसे हमारे देश में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं रहीं।”
जब शर्मा भारत लौटने वाले थे, तो सैन डिएगो के मेयर ने उनके लिए विदाई समारोह का आयोजन किया। मेयर ने उनका अभिनंदन किया और 20 जुलाई को ‘मनीष शंकर शर्मा’ दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। हर साल इस दिन शर्मा को सैन डिएगो के लोगों से बधाई और शुभकामनाएं मिलती थी।
शर्मा 55 देशों की यात्रा कर चुके थे और काम के अलावा स्थानीय समुदाय से बातचीत करना उन्हें बहुत पसंद था। एक पुलिस अफसर होने के अलावा एक संवेदनशील सामाजिक कार्यकर्ता ज्यादा थे। यह गुण उन्हें पैतृक रूप से मिला था। उनके पिता कृपा शंकर शर्मा मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव रहे हैं। उनके चाचा डॉ सीता शरण शर्मा मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं। उनके पूर्वजों ने ही होशंगाबाद में नर्मदा किनारे सेठानी घाट बनवाया कई धर्मशालाएं बनवाईं।
शर्मा बातचीत में बताते थे कि, “एक समय लोग आश्चर्य करते थे कि भारत परमाणु परीक्षण कैसे कर सकता है। जब भारत ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया, यूनाइटेड नेशन के शांति मिशन पर थे। किसी को यकीन नहीं हुआ कि हमने वाकई ऐसा किया है। उनकी स्कूल शिक्षा डेली कॉलेज इंदौर में हुई। भोपाल के बी एस एस कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। उन्होंने बेलूर इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से भी डिग्री ली। अब उनकी स्मृतियां ही शेष हैं।