धर्मेंद्र पैगवार
भोपाल। हनीमून पर गए इंदौर के राजा रघुवंशी की मेघालय में हुई हत्या ने पूरे भारतीय समाज को झकझोर दिया है। न केवल राजा बल्कि उसके माता-पिता ने भी इस शादी के बाद सैकड़ो सपने संजोए होंगे। सोनम द्वारा सुपारी किलर के जरिए सिर्फ राजा की ही हत्या नहीं हुई है। इस घटना ने रिश्तो मर्यादाओं और संस्कारों को भी मार दिया है।
भारतीय समाज में जब शादी होती है तब यह कहा जाता है की एक वधू दो कुलों को तार देती है। लेकिन सोनम ने राजा की जान तो ली ही उसके माता-पिता को भी जीते जी मार दिया। इसी के साथ सोनम के माता-पिता और भाई भी की प्रतिष्ठा भी पूरी तरह धूल धूसरित गई है। राजा का कसूर यह था कि उसने माता-पिता के कहने पर अपनी जाति की लड़की से शादी की थी। उसे भारतीय समाज के ताने वाने और परंपराओं पर पूरा भरोसा था। उसे क्या मालूम था कि जिस खुले विचारों वाली सोनम को वह अपनी जीवन संगिनी बना रहा है वो ही वासना में पड़कर इतना जघन्य अपराध कर देगी जिससे पूरा भारतीय समाज चिंता में पड़ जाएगा।
सोमवार की सुबह से हर भारतीय की जुबान पर यही चर्चा है जो सवेदनशील है, वह डरे हुए हैं और चिंतित भी। जिस समाज में कहा जाता है कि”नारी का सच्चा आभूषण उसकी मर्यादा, विनम्रता और शालीनता है।” उसे सोनम ने आइना दिखा दिया है।
महिलाओं को आजादी और बराबरी के हक के नाम पर जो कुछ मिला यह घटना उसका दुष्परिणाम है। इस घटना ने लोगों को सबक दिया है कि वह अपनी बेटियों की परवरिश पर ध्यान दें।
उन्हें पढ़ने लिखने, आगे बढ़ने और घूमने की आजादी मिले लेकिन भारतीय संस्कार और मर्यादा की सीख भी दी जाए। भारतीय समाज में सती सावित्री से लेकर इंदौर की लोक सेवक अहिल्याबाई होलकर ऐसे सैकड़ो उदाहरण है जो भारत की बेटियों को बताने की जरूरत है।
पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय ने युवतियों के छोटे कपड़ों पर चिंता जताई थी। कैलाश जी भारतीय जीवन दर्शन और परंपराओं की चिंता करने वाले नेता हैं। लेकिन उनकी इस चिंता को भी हमारे कई पत्रकार मित्रों ने नया एंगल देने की कोशिश भी की। समाजसेवी पत्रकार और राजनेता हर समय अपने समाज और शहर की दिशा तय करते हैं। भोपाल इंदौर और रायपुर जैसे मझौल शहरों में पब और नाइट कलर तेजी से बड़ा है। भले ही रात को 11:00 बजे शहर बंद हो जाते हों लेकिन पबों में शराब और ड्रग्स के नशे में झूमती अर्धनग्न युवतियों को लेकर सवाल उठाने वालों को दकियानुस कहा जाने लगा है। यह वैचारिक पतन की शुरुआत है। उच्चश्रृंखलता
नग्नता फूहड़ता चरित्रहीनता और अश्लीलता के पैरों कर तथाकथित प्रोग्रेसिव कहे जाने लगे हैं।
राजा की मां के बयानों से स्पष्ट है की सोनम के परिवार को उसकी शादी की जल्दबाजीथी। लड़की वालों ने ही कुंडली का मिलान कराया और यह भी कहा कि अगले साल शादी नहीं निकलती। ऐसा हो नहीं सकता कि सोनम और उसके पिताजी के कारोबार में मुनीम का काम करने वाले राज कुशवाहा के प्रेम प्रसंग की भनक उसके पिता और भाई को ना हो।
यदि वह चाहते तो समाज में झूठी शान ओ शौकत के बजाय सोनम की राज से शादी कर सकते थे। यदि ऐसा होता तो ना राजा मारा जाता और ना ही जीते जी उसके माता-पिता।
स्वच्छंदता दी है तो स्वीकारिए भी
भारतीय समाज में दो युवाओं के प्रेम को आदिकाल से स्वीकारोक्ति दी गई है। अब जब मिडिल क्लास के बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन है। और इस मोबाइल फोन में वह सब कुछ है जो बच्चे को समय से पहले नहीं मालूम होना चाहिए लेकिन मालूम पड़ रहा है। तब समाज को टीनएजर्स और युवा बच्चों के रिश्तों को खुलेपन से स्वीकारना पड़ेगा। सोनम के परिवार ने दो गलतियां की। पहले अपनी बच्ची को अच्छे संस्कार नहीं दिए। दूसरी वह रास्ता भटकी तो सामाजिक मान्यताओं का हवाला देकर उसकी इच्छा के विपरीत एक सज्जन परिवार से उसका रिश्ता कर दिया। यदि सोनम का परिवार जिसने उसे स्वच्छंदता दी वह उसकी कथित आजादी को मन से स्वीकार लेता तो राजा, इस समाज की मर्यादा और संस्कार सभी बच सकते थे।
भारतीय समाज में विवाह केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि आत्मा का पवित्र संयोग माना जाता है। पति और पत्नी के रिश्ते को “सात जन्मों का साथ” कहा गया है, जहाँ विश्वास, समर्पण और त्याग ही इस बंधन की नींव होते हैं। लेकिन जब इसी रिश्ते में घृणा, स्वार्थ और हिंसा का ज़हर घुल जाता है, तो वह सिर्फ एक इंसान की हत्या नहीं होती — वह रिश्तों, मर्यादाओं और संस्कारों की भी हत्या होती है।
जब एक पत्नी अपने ही पति की हत्या करती है, तो वह केवल एक जीवन का अंत नहीं करती, वह उस विश्वास को भी कुचल देती है जो एक पति ने उसकी आँखों में देखा था। वह उस मर्यादा को तार-तार कर देती है, जिसकी रक्षा नारी के संस्कारों की पहचान मानी जाती थी।
यह घटना सिर्फ एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। विवाह जैसे पवित्र संबंध में यदि किसी जीवन की डोर ही अपनों के हाथों कट जाए, तो वह समाज के लिए एक आईना बन जाती है — जिसमें हम अपने संस्कारों की गिरती हुई छाया को साफ देख सकते हैं।
संस्कार कहाँ चूक गए?
प्रश्न यह उठता है कि संस्कारों की नींव कहाँ डगमगाई?
क्या आज की शिक्षा में केवल प्रगति की बातें हैं, लेकिन सहनशीलता, संवाद और धैर्य की शिक्षा कहीं पीछे छूट गई है?
क्या आधुनिकता के नाम पर नारी ने स्वतंत्रता तो प्राप्त की, लेकिन जिम्मेदारियों और मूल्यों को कहीं खो दिया?
पति की हत्या करने वाली एक पत्नी की कहानी, दरअसल, समाज में टूटते रिश्तों की कहानी है। यह उस पीड़ा की चीख है जो अब तक चुप थी — जहाँ संवाद की जगह संदेह ने ले ली, जहाँ प्रेम की जगह प्रतिशोध ने और जहाँ ममता की जगह मर्यादा-विहीनता ने घर कर लिया।
मर्यादा और संस्कार की पुनर्परिभाषा की आवश्यकता
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम फिर से उन मूल्यों की ओर लौटें जहाँ नारी की पहचान उसकी सहनशक्ति, करुणा, विवेक और न्यायप्रियता से होती थी। स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचार नहीं होना चाहिए, और अधिकारों के साथ कर्तव्यों का संतुलन अनिवार्य है।
जो नारी एक समय ‘गृहलक्ष्मी’ कहलाती थी, जब वही हिंसा और हत्या का मार्ग चुनती है, तो पूरा समाज भीतर तक हिल जाता है। यह नारी के रूप और स्वरूप की पुनर्रचना का संकेत है।
एकदम सही लिखा है आपने भाई समाज हित में इन सभी बातों पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है🙏🙏